विषय क्या है ?
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 29 जून के सरकारी आदेश में कहा गया है कि जिला स्तर पर तैनात डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (DFO), कंजर्वेटर (CF), और चीफ कंजर्वेटर (CCF) के काम का मूल्यांकन जिला कलेक्टर (DM) और संभागीय आयुक्त (Divisional Commissioner) अलग-अलग करेंगे। मूल्यांकन में वन अधिकार अधिनियम, वन प्रबंधन, भूमि अधिग्रहण, इकोटूरिज्म, या वन क्षेत्रों में खनन गतिविधियों जैसी क्षेत्रीय गतिविधियाँ शामिल हैं। इन्हें 10 स्टार की स्केल पर ग्रेड दिया जाएगा, तथा साथ ही उनके कार्यों के बारे में टिप्पणी भी देनी होगी।
तो हंगामा क्यों है बरपा ?
IFS Association ने 4 जुलाई को मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर कुछ चिंताये व्यक्त की है
- यह आदेश आईएफएस अधिकारियों के कार्यों में हितों के टकराव को जन्म देता है, जिससे उनका मनोबल कम हो सकता है। खासकर जब जिला कलेक्टर जैसे अधिकारियों द्वारा उनका मूल्यांकन किया जाएगा, जो वन संरक्षण और विकास के कार्यों में दबाव महसूस कर सकते हैं।
- यह प्रशासनिक आदेश देश के प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और सुरक्षा को नुकसान पहुंचा सकता है। आईएफएस अधिकारियों का मुख्य दायित्व वन संरक्षण है, और इस आदेश से उनके काम में बाधा आ सकती है।
- यह आदेश 1995 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन करता है, जिसमें कहा गया है कि आईएफएस अधिकारियों का मूल्यांकन उनके विभाग के वरिष्ठ अधिकारी द्वारा ही किया जाना चाहिए, जबकि इस आदेश में जिला कलेक्टर और संभागीय आयुक्त को मूल्यांकन करने के लिए कहा गया है।
तो क्या उपाय है ?
मुख्यमंत्री द्वरा इस विषय पर आईएफ़एस एसोसिएशन ने जांच की जाने की विनती की है| और उचित संशोधन किया जाए
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